Thursday, August 28, 2008

पापा आई लव यू !

जीवन के कुछ पल होते है जिसे आप जिन्दगी भर नहीं भुला सकते। ऐसा ही एक पल मेरी जिंदगी मैं आज आया। आज मैं और कुछ ऑफिस के दोस्त लंच कर रहे थे। मेरे मित्र संजय जी के सच्चाई से करीब एक घटना सुनाई।


एक व्यक्ति ने नई कार खरीदी। एक दिन वो अपनी चार वर्ष की बेटी के साथ घुमने के लिए निकला। निकलते समय उसने अपनी कार पे कपड़ा से सफाई करने लगा। उसकी बेटी ने खेलते-खेलते एक पत्थर से उसने कार पे कुछ लिख दिया, उस पर आदमी को गुस्सा आ गया। उसने पास में पड़े डंडे से उसके हाथो पर डंडे मारे, जिससे उसकी हाथो की उंगलियों में काफी चोट पहुची।



उसको अस्पताल ले जाना पड़ा। डॉक्टर ने कहा केस बहुत गंभीर है, उंगलियों बहुत नुकसान पंहुचा है। काफी इलाज कराने के बाद भी ठीक नहीं हुआ तो डॉक्टर ने कहा की बच्ची की उंगलियों काटनी पड़ेगी।
एक दिन बाद, उस ओपरेशन में उस बच्ची की उंगलियों काट दी गई। ओपरेशन के एक घंटे बाद जब बच्ची को होश आया तो उसने अपने पापा से पूछा, पापा मेरी उंगलियों कब वापस आएगी। अपनी गलती पर सर झुकाते हुए अपने किए पर पछता रहा और बार-बार पूछने पर उस व्यक्ति ने अपनी बेटी को सच्चाई बताई की वो अब कभी नहीं आएगी।



इस पर बेटी ने बहुत ही मासूमियत से बताया की उस दिन आपकी नई कार पर मैंने पत्थर से लिखा था "पापा आई लव यू!".

Wednesday, August 27, 2008

खुशियों और आंसुओं का बाजार

जेड गुडी को लेकर एक बार फिर चर्चाओं का बाजार गर्म है। कुछ महीने पहले ऐसी ही चर्चा निहिता विश्वास व चार्ल्स शोभराज को लेकर थी। मार्किटिंग के इस जमाने में तिल का ताड़ बनते देर नहीं लगती। कई बार छोटी-छोटी बातों को भी इतनी अहमियत दे दी जाती है कि पूरी दुनिया में उन्हीं की चर्चा होती रहती है। जाहिर है, आज बाजार में केवल सामान ही नहीं, इमोशंस भी बिकते हैं

हार्वर्ड बिजनेस स्कूल में लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचने की कोई तरकीब नहीं सिखाई जाती और न ही मार्किटिंग के लॉन्ग डिस्टन्स कोसेर्ज में इसकी शिक्षा दी जाती है। ये छोटी-छोटी बातें समाज के बीच से ही निकलती हैं और देखते ही देखते दुनिया में छा जाती हैं। मॉडर्न मार्किटिंग में लोगों को अपने प्रॉडक्ट या ब्रैंड की ओर खींचने के रूल्स बदल गए हैं। आज के उपभोक्तावादी युग में दुनिया एक बाजार में तब्दील हो गई है, जहां हर कोई अपने-अपने ढंग से अपनी मार्किटिंग करने की कोशिश करता है। अब दुनिया में केवल सामान ही नहीं, भावनाएं भी बिकती हैं।

साभार: इकनोमिक टाईम्स