Monday, March 31, 2008

गधो में गधा !


सिराथू (कौशांबी)। कड़ा के शीतला धाम में शनिवार को गधों का अनोखा मेला लगा। सैकड़ों की तादाद में बिकने के लिए पहुंचे गधों में इटावा के राजाराम चौधरी का सबसे महंगा गधा सत्तर हजार रुपये में बिका।

शीतला धाम में पारंपरिक तरीके से गर्दभ मेला लगा। कई दशकों से चली आ रही इस परम्परा को चौधरी समाज के लोग निभा रहे हैं। शनिवार की सुबह मेले में शरीक होने आए गधा मालिकों ने भोर में ही गंगाघाट पहुंच अपने-अपने गधों को स्नान कराया।
इसके बाद अपने गधों को विभिन्न रंगों से सजाया। रंग-बिरंगी चुनरी, गमछा पहनाकर इनकी शान बढ़ाने की कोशिश की गई। मेले में आसपास के जनपदों के अलावा गैर प्रांतों के लोग भी अपने गधों के साथ शामिल होते हैं।

थोड़ा हिन्दी जान लो भाई !!!

Saturday, March 22, 2008

जिधर देखू तेरी तस्वीर नजर आती है !

यह बात तब की है जब मैंने अपना कदम जवानी देहलीज पर रखा ही था। उस समय मैं १२वी में पढता था, कुछ भी नहीं पता था कि क्या सही है, क्या ग़लत है, क्या करना है, बस एक सूत्री काम दोस्तो के साथ "मौजा ही मौजा"।

वैसे तो होली मेरे लिए हमेशा ही खास होती है लेकिन उस साल की होली तो मुझे आज तक याद है, हम पांच दोस्त होली की मस्ती मे थे एक दुसरे की टांग खीचते हुए सिविल लाइन्स से चौक की तरफ़ बढे चले। करीब आधे घंटे में चौक पहुचे। वहाँ चौराहे पे करीब २०० से ३०० लड़के अपनी मस्ती नाच गा रहे थे। हम भी उन्ही में शामिल हो गए।

तभी मेरी नजर एक मकान की खिड़की पर पड़ी, उस पर एक लड़की खड़ी थी, मैंने पहले तो टालने की कोशिश की लेकिन नजर थी की कुछ समय बाद वही चली ही जाती। उसकी आखों में अजीब से कशिश थी। मैंने अपने दोस्तो को भी दिखाया लेकिन वह तो होली की मस्ती में चूर थे। लेकिन मैं तो उसे देखता ही रहा। थोडी देर में हम लोग भी अपने अपने घरो के लिए चल दिए। लेकिन मैं घर कब, कैसे और कितनी देर में पंहुचा पता ही नहीं चला।

घर पहुँच के मैं नहा के सो गया लेकिन वह मेरे आखों के सामने घूम रही थी। मैंने सोचा एक दो दिन में यह खुमारी चली जायगी लेकिन मैं जिधर जाता सिर्फ़ वह ही वह नजर आती थी। न ही खेलने में मन लगता न ही किसी और काम में। इस बात को करीब 15 साल हो गए है। सिलसिला आज शायद कम हो गया है लेकिन आज भी वह मुझे नहीं भूलती।

Friday, March 21, 2008

होली मुबारक !

होली आई होली आई।
हुर्दंगो की टोली आई॥

मलत गुलाल हाँथ पिचकारी।
बचे न कोई नर नारी ॥

होली आई होली आई।
होली आई होली आई।




किस किस को याद कीजिये, किस किस को रोइए।
आराम बड़ी चीज़ है, मुंह ढक के सोइए॥

Tuesday, March 18, 2008

मैं सोनिया गाँधी बनना चाहता हूँ

पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष आसिफ अली जरदारी का कहना है कि वह सोनिया गांधी बनना चाहते हैं। पाकिस्तान और किसी अन्य जगह की अपेक्षा भारत के लिए अधिक मायने रखती है।

आम धारणा है कि मनमोहन सिंह सिर्फ़ रबड़ स्टाम्प की तरह है और सारे फैसले "दस जनपथ" पर यानी सोनिया गांधी ही करती है। बजट हो, परमाणु करार पर लेफ्ट गीदड़ भपकी, काग्रेस में वरिष्ठ पदों पर नियुक्तिय और भी है .... सब ही पर सोनिया की मोहर होना जरुरी है।


जब भी कोई मनमोहन सिंह से उनकी सरकार की पूछता है तो वह यह कहकर मुकर जाते है कि सोनिया जी को बात करे है। सच्चाई यह है कि शासन सोनिया गांधी ही कर रही हैं, मनमोहन सिंह तो मात्र प्रशासन चलाते हैं। जब जरदारी यह कहते है कि वह सोनिया गाँधी बनना चाहता हूँ इसका मतलब यह हुआ कि पद बिना विराजे हुए सत्ता सुख। जरदारी तो पहले ही प्रधानमंत्री पद के प्रति अपनी लालसा जाहिर कर चुके हैं।

Sunday, March 16, 2008

कुछ तो बात है अपने पुराने शहरो में ...

इस महानगर की भागदौड़ में मैं शायद खो गया हूँ। मैंने अपने को खोजने नाकाम कोशिश की कुछ याद आया लेकिन धुंधला सा।
मैं इलाहाबाद में रहता था , वहाँ के रास्ते गलियां सब अपने थे, जब भी मैं अपनी साईकिल से वहाँ से निकलता था, कोई न कोई चाचा ताऊ मिली ही जाता था। मैं भी उन लोगो को बहुत अदब से नमस्कार करता था। फिर वह अपने घर ले जाते, चाची प्यार से अपने हाथो से बने लड्डू खिलाती फिर हालचाल पूछती थी। ..... लेकिन महानगर में तो कोई एक दूसरे को पहचानते ही नही। लड्डू क्या वह तो नमस्ते तक नहीं करते।
कुछ तो बात है अपने पुराने शहरो में ...

वहाँ के तयौहारों में तो पता चलता त्यौहार है। हफ्तो पहले से ही माँ तैयारी शुरू कर देती थी। वहाँ की होली की बात ही कुछ और। वह् माँ के साथ आलू के पापड़ बनवाते बनवाते चुपके से खाना, गुझिया के बनते समय गरम-गरम चखना, शाम को हास्य कवि सम्मेलन में वह हास्य की फुहार, होली जलने की रात दोस्तो के साथ शहर में घूमना, वह होली के दिन रंगो की बाल्टी, हर तरफ़ अबीर गुलाल .... लेकिन यहाँ तो भाई एक दूसरे को रंग क्या पानी की बूंद नहीं डालता।

यहाँ मरने पर चार कंधे नहीं नसीब होते है. यहाँ रहने वाले एक अजीब सी जी रहे है। जिसमे न प्यार, न रिश्ते , न जज्बात, बस जी रहे है। मेरा मानना है कि ९०% लोगो वही के है लेकिन वहाँ के लोग महानगर में आ के महानरकीय जिन्दगी जी रहे है। पता नहीं क्यों जी रहे है।

Wednesday, March 5, 2008

चाचा की 'राज' नीति

राज ठाकरे के उत्तर भारतीय विरोधी बयान को आज बाल ठाकरे ने घी डाल दिया। समय-समय पर हिंदुत्व का नारा बुलंद करने वाले बाल ठाकरे ने बिहारियों के विरोध में कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने एक SMS का जिक्र करते हुए कहा ...

एक बिहारी , सौ बीमारी ।
दो बिहारी , लड़ाई की तैयारी ।।
तीन बिहारी , ट्रेन हमारी ।
पांच बिहारी , सरकार हमारी ।।

मेरा मानना है, कि मराठी वोट बैंक हाथ से निकलता देखकर बाल ठाकरे तिलमिलाए हुए हैं और इसलिए राज ठाकरे से बढ़-चढ़कर भड़काऊ बातें कह रहे।

हिन्दी साहित्य की दशा और दिशा

भारत के दिल यानी दिल्ली में चाय बेचता हुआ लक्ष्मण राव किसी भी दूसरे चाय वाले की तरह ही नजर आएगा पर वो अब तक कुल 18 किताबें लिख चुके हैं।

दिल्ली में आईटीओ के पास चाय की दुकान चलाने वाले 53 वर्षीय लक्ष्मण के पास 'भारतीय साहित्य कला प्रकाशन' नाम का खुद का प्रकाशन भी है। लक्ष्मण ने बताया कि मैं पिछले 28 या 29 सालों से लघु कहानियां, नाटक और उपन्यास लिख रहा हूं। उन्होंने बताया कि अपनी पहली किताब नई दुनिया की नई कहानी में मैंने अपने जीवन के सारे संघर्षो और चुनौतियों का जिक्र किया है। यह किताब मैंने 1979 में लिखी थी।
महाराष्ट्र के अमरावती जिले में एक गरीब किसान परिवार में जन्मे लक्ष्मण को हिंदी साहित्य से विशेष लगाव रहा है। उन्होंने 1973 में मुंबई विश्वविद्यालय से हिंदी माध्यम में 10वीं की शिक्षा पूरी की। उन्हे गुलशन नंदा के उपन्यासों से विशेष लगाव रहा है।

लक्ष्मण ने कहा कि वह जीवन के शुरुआती दौर में लेखक बनना नहीं चाहते थे, पर एक घटना ने उन्हे ऐसा करने के लिए प्रेरित किया। एक छोटा बच्चा, जो नदी में नहाने गया था, डूब कर मर गया और इस घटना ने उन्हे इतना उद्वेलित किया कि अपनी भावनाओं को एक शक्ल देने के लिए उन्होंने किताबों का सहारा लिया। हालांकि घर के कमजोर आर्थिक हालात की वजह से उन्हे अपनी पढ़ाई दसवीं कक्षा के बाद छोड़नी पड़ी। आजीविका के लिए उन्होंने कुछ समय के लिए स्थानीय मिल और निर्माण स्थलों पर भी काम किया। पर फिर वह 1975 में दिल्ली आ गए।

दिल्ली में दरियागंज इलाके में किताब बाजार को देखकर उनका शौक एक बार फिर जाग उठा। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से पत्राचार के माध्यम से स्नातक की डिग्री ली। अपनी जमा पूंजी से उन्होंने एक चाय की दुकान खोली और तब से वह किताबें लिखने में जुट गए। हालांकि उन्हे किसी प्रकाशक से कोई सहायता नहीं मिली। तब उन्होंने सोचा कि वह अपनी किताबों को खुद ही लिखेंगे, प्रकाशित करेगे और बेचेंगे। लक्ष्मण गर्व से कहते है, मेरी कुछ किताबों को आप सार्वजनिक पुस्तकालयों और स्कूली पुस्तकालयों में देख सकते है।


आभार: जागरण

प्रताप सोमवंशी को केसी कुलिश सम्मान


नई दिल्ली, 4 मार्चः बुंदेलखंड में सूखाग्रस्त किसानों की समस्या और भुखमरी से होने वाली मौतों की खोजपरक रिपोर्ट, विश्लेषण और लेखों के लिए जाने-माने पत्रकार प्रताप सोमवंशी को केसी कुलिश अंतर्राष्ट्रीय मिडिया मेरिट अवार्ड दिया गया है।

राजस्थान पत्रिका, समाचार पत्र समूह की ओर से संचालित पुरस्कार में पहला सम्मान पाकिस्तान के द डॉन और हिन्दुस्तान टाइम्स को संयुक्त रूप से दिया गया है. यह पुरस्कार 12 मार्च को दिल्ली में आयोजित समारोह में पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम प्रदान करेंगे। समारोह की अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी करेंगे.

पुरस्कार के निर्णायक मंडल में एन राम, बकुल ढोलकिया, पीयूष पांडेय, एचके दुआ और गुलाब कोठारी थे। पुरस्कार के लिए अमेरिका, कनाडा, जर्मनी, आस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका से भी प्रविष्टियां शामिल की गई थीं.

सोमवंशी ने अपने कैरियर की शुरुआत जनसत्ता में बतौर रिपोर्टर की थी और अपनी खास तेवर की रिपोर्टिंग के कारण देश भर मे सराहे गए। इसके बाद से वे दैनिक भास्कर नोएडा संस्करण तथा अमर उजाला देहरादून संस्करण के प्रभारी रहे. इस वक्त वे अमर उजाला कानपुर के संपादक हैं.

Monday, March 3, 2008

ब्लॉग पर बढती अश्लीलता

मित्रो,

मुझे यह लगता है की हिन्दी ब्लोगस पर बढ़ते अश्लीलता अब सोचनीय विषय बन चुका है वह भी ब्लॉगर का समूह जहाँ सब ही अपनी बात को दावेदारी से रखते है लेकिन इस दावेदारी मे यह भूल जाते है की वह जिस हिन्दी के शब्दों का प्रयोग कर रहे है वह सर्वमान है की नहीं

बीते दिनों मे जिस तरह ब्लॉगरस ने अपनी लड़ाई लड़ी है, उसमे सिर्फ़ और सिर्फ़ हिन्दी का नुकसान हुआ है मुझे यह लगता है की ब्लॉगस के दिग्गजों को यह समझना चाहिए की जिन शब्दों का प्रयोग वह करते है उससे आपकी पहचान बनती है और मुझे यह भी लगता है की ब्लॉगर शायद अपनी कुछ सस्ती लोकप्रियता तो हासील करते होगे लेकिन बहुत बड़ा तबका शायद दुबारा उनके उदगार सुनना पसन्द न करे